- ‘कामायनी’ हिन्दी भाषा का एक ‘महाकाव्य’ और जयशंकर प्रसाद की अमर कृति है।
- यह आधुनिक छायावादी युग की सर्वोतम प्रतिनिधि काव्य है। इसे छायावाद का ‘उपनिषद’ भी कहा जाता है।
- यह प्रसाद जी की अंतिम काव्यकृति है। यह महाकाव्य 1936 में प्रकाशित हुई थी।
- इसकी भाषा साहित्यिक खड़ी बोली और छंद तोटक है।
- इसमें पंद्रह सर्ग हैं –
- 1. चिंता
- 2. आशा
- 3. श्रद्धा
- 4. काम
- 5. वासना
- 6. लज्जा
- 7. कर्म
- 8. इर्ष्या
- 9. इड़ा
- 10. स्वप्न
- 11. संघर्ष
- 12. निर्वेद
- 13. दर्शन
- 14. रहस्य
- 15. आनन्द
- ‘चिंता’ सर्ग से लेकर ‘आनन्द’ सर्ग तक की यात्रा करता हुआ यह काव्य हिमगिरी की एक चेतनता से समरस होने वाले मनु के जीवन का इतिहास है।
- कामायनी का चिंता सर्ग 1927 के ‘सुधा’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ था।
- ‘कामायनी’ पर प्रसाद जी को मंगलाप्रसाद पुरस्कार मिला।
- ‘कामगोत्र’ में जन्म लेने के कारण श्रद्धा को ‘कामायनी’ कहा गया।
- प्रसाद जी ने कामायनी में आदि मानव की कथा के साथ युगीन समस्याओं पर प्रकाश डाला है।
- कामायनी का अंगीरस श्रृगांर और शांत रस तथा शैली प्रतीकात्मक है।
- कामायनी के कथा का आधार ऋग्वेद, छन्दोग्य, उपनिषद, शतपथ ब्राह्मण तथा भागवत हैं।
- कामायनी में प्रस्तुत घटनाओं का आधार शतपथ ब्राह्मण से लिया गया है।
- कामायनी की पूर्वपीठिका ‘प्रेमपथिक’ है।
- कामायनी की श्रद्धा का पूर्व संस्करण ‘उर्वर्शी’ है।
- कामायनी का हृदय लज्जा है।
- कामायनी की कथा के चार सोपान हैं- जलप्लावन और मनु, मनु श्रद्धा मिलन और गृहस्त जीवन, मनु इड़ा मिलन और सारस्वत नगर की घटना और मनु का कैलाश यात्रा।
- डॉ द्वारिका प्रसाद के शब्दों में- “प्रसाद छायावाद के प्रवर्तक ही नहीं हैं, अपितु उसकी प्रौढ़ता, शालीनता, गुरुता, गंभीरता के भी पोषक कवि हैं। प्रसाद की कविताओं में प्रकृति के सचेतन रूप के साथ-साथ मानव के लौकिक एवं पारलौकिक जीवन की जैसी रमणीक झाँकी अंकित है, वैसी किसी अन्य कवि की कविता में दृष्टिगोचर नहीं होती।”
- इस महाकाव्य के नामकरण के संदर्भ में आचार्य नंददुलारे वाजपेयी ने लिखा है- “कामायनी या श्रद्धा का चरित्र अपनी आदर्शात्मक विशेषता के कारण काव्य का सर्वप्रमुख चरित्र है। कामायनी को नायिका प्रधान काव्य कहा जा सकता है।”
- डॉ शभुनाथ के सिंह शब्दों में- “कामायनी में मनुष्य को न तो देवता बनाने का प्रयत्न किया गया है और न उसे भयंकर राक्षस, निरे पशु या नियातिचालित प्राणी के रूप में ही उपस्थित किया गया है। इसके विपरीत उसके सभी चरित्र नीचे से ऊपर उठते हुए मनिमय कोश से आनंदमय कोश की ओर अग्रसर होते हुए अंत में पूर्णता की प्राप्ति करते हुए दिखलाए गए हैं।”
- डॉ भोलानाथ तिवारी के शब्दों में- “अंतर्द्वंद्व की दृष्टि से मनु का चित्रण पुरे हिन्दी काव्य में अकेला है।”
- डॉ भोलानाथ तिवारी के शब्दों में- ‘‘कामायनी के चरित्र दोहरे हैं। उनके दोहरेपन की रक्षा करते हुए भी कवि ने उन्हें पूर्ण सजीव रखने में जो सफलता पाई है वह निश्चय ही अप्रतिम है।’’
- डॉ भोलानाथ तिवारी के शब्दों में- ‘‘भारतीय नारी के जिस उदात्ततम रूप और विशाल अंतःकरण का कवि प्रसाद की कल्पना स्पर्श कर सकी उसी का मोहक चित्र ‘कामायनी’ (श्रद्धा) है।’’
- अमरकोष के अनुसार- ‘‘गौ भू वाच्स्तिवड़ा इड़ा’ कहकर इड़ा शब्द पृथ्वी अथार्त बुद्धि, वाणी आदि का पर्यायवाची माना गया है।”
- कामायनी के आमुख में ही प्रसाद जी ने कहा है- ‘‘मन्वन्तर के अर्थात मानवता के युग के प्रवर्तक के रूप में मनु की कथा आर्यों की अनुश्रुति में दृढ़ता से मानी गई है। इसलिए वैवस्वत मनु को ऐतिहासिक पुरुष मानना उचित है।”
कामायनी के विषय में साहित्यकारों के कथन:
- डॉ नागेन्द्र: कामायनी मानव चेतना का महाकाव्य है। यह आर्ष ग्रंथ है।
- मुक्तिबोध: कामायनी फैंटसी है।
- इन्द्रनाथ मदान: कामायनी एक असफल कृति है
- नन्ददुलारे वाजपेयी: कामायनी नये युग का प्रतिनिधि काव्य है।
- सुमित्रानंदन पंत: कामायनी ताजमहल के सामान है।
- नगेन्द्र: कामायनी एक रूपक है।
- श्यामनारायण: कामायनी विश्व साहित्य का आठवाँ महाकाव्य है।
- रामधारी सिंह ‘दिनकर’: कामायनी आधुनिक सभ्यता का प्रतिनिधि महाकाव्य है।
- डॉ नगेन्द्र: कामायनी समग्रतः में समासोक्ति का विधान लक्षित करती है।
- नामवर सिंह: कामायनी आधुनिक सभ्यता का प्रतिनिधि महाकाव्य है।
- हरदेव बाहरी: कामायनी आधुनिक हिन्दी साहित्य का सर्वोतम महाकाव्य है।
- रामरतन भटनागर: कामायनी मधुरस से सिक्त महाकाव्य है।
- विश्वंभर मानव: कामायनी विराट सामंजस्य की सनातन गाथा है।
- हजारी प्रसाद दिवेदी: कामायनी वर्तमान हिन्दी कविता में दुर्बल कृति है।
- आचार्य रामचंद्र शुक्ल: कामायनी में प्रसाद ने मानवता का रागात्मक इतिहास प्रस्तुत किया है। जिस प्रकार निराला ने तुलसीदास के मानस विकास का बड़ा दिव्य और विशाल रंगीन चित्र खिंचा है।
- शांतिप्रिय द्विवेदी: कामायनी छायावाद का उपनिषद है।
- रामस्वरूप चतुर्वेदी: कामायनी को कम्पोजिसन की संज्ञा देने वाले
- बच्चन सिंह: मुक्तिबोध का कामायनी संबंधिअध्ययन फूहड़ मार्क्सवाद का नमूना है।
- मुक्तिबोध: कामायनी जीवन की पुनर्रचना है।
- नगेन्द्र: कामायनी मनोविज्ञान की ट्रीटाइज है।
- डॉ कमलेश्वर प्रसाद सिंह: ‘मनु और श्रद्धा एक पुनर्मिलन प्रप्त्याशा है’
- रामस्वरूप चतुर्वेदी: कामायनी आधुनिक समीक्षक और रचनाकार दोनों के लिए परीक्षा स्थल है।
- कामायनी की ऐतिहासिकता में यत्र तत्र वर्तमान के स्वर मुखरित हुए हैं। कवि ने स्वयं लिखा है- “मनु भारतीय इतिहास के आदि पुरुष हैं। राम, कृष्ण और बुद्ध इन्हीं के वंशज है। हाँ कामायनी की कथा श्रृंखला मिलाने के लिए ही थोड़ा बहुत कल्पना को भी ले आने का आधार मैं नहीं छोड़ा हूँ।”
- मानव सभ्यता की शुरुआत, उत्थान और विकास अनेक घटनाओं, परिवर्तनों और रहस्यों से भरा हुआ है। विकास यात्रा की इस महागाथा में मानव के साथ प्रकृति भी एक अनिवार्य तत्व के रूप में हमेशा से विद्यमान रही है। जिस प्रकार प्रकृति अपने सुंदर वातावरण रूपी आँगन में प्राणियों को आश्रय और जीवन देती है उसी प्रकार उसका भरण-पोषण भी करती है। इन सबके बावजूद प्रकृति का भी अपना कुछ नियम होता है। इसलिए शोषित या उपेक्षित किए जाने पर प्रकृति अपने विनाशक और विकराल रूप से प्राणियों को दंडित भी करती है।
- विश्व के सभी प्राचीन सभ्यताओं में यह प्रचलित है कि जब-जब मानव ने स्वयं को सर्वशक्तिमान समझकर प्रकृति के साथ छेड़-छाड़ किया है, तब-तब प्रकृति ने मुसलाधार वर्षा, आंधी-तूफान और भूकंप के द्वारा सब कुछ तबाह किया है। ‘प्रलय’ भारतीय शास्त्रों और पुराणों के अनुसार उस घटना को कहते हैं जो कि एक निश्चित समय पर घटती है, जिसमें सृष्टि का अंत हो जाता है। चारों तरफ केवल पानी ही पानी नजर आता है। जलप्लावन की घटना विश्व के इतिहास में एक प्राचीन घटना है। शतपथ ब्राह्मण में इसे ‘ओध’ पुरानों में प्रलय कहा गया है। प्रलय के तीन प्रकारों की बात कही गई है- नैमित्तक, प्राकृतिक और आत्यान्तिक। कामायनी में वर्णित प्रलय को ब्राह्म नैमित्तक कहा गया है। पिछले जल प्रलय का वर्णन प्राचीन ग्रंथों ‘ओध’ नाम से किया गया है।
- मुस्लिम ग्रंथों के अनुसार इसे ‘क़यामत’ और अंग्रेजी में ‘Doom’s Day’ कहते हैं। पहलवीं ग्रंथों तथा पारसी के धार्मिक ग्रंथ ‘बेंदीदार’ में जलप्लावन का वर्णन हुआ है। सुमेरियन ग्रंथ, यूनान, बेबिलोनिया के साहित्य में भी जलप्लावन की घटना वर्णित है। इस प्रकार यह कथा संसार के सभी साहित्यों में वर्णित है।
- ऐसी मान्यता है कि मानवों के उदय से पहले धरती पर देवजाति का साम्राज्य था। अपार समृधि और एश्वर्य के कारण वे भोग-विलास में डूब गए थे। अहंकार में चूर उन्होंने प्रकृति को भी अपने अधीन समझ लिया था। उनके नियमों में हस्तक्षेप करना आरम्भ कर दिया था। जिसके फलस्वरूप प्रकृति ने अपने भयंनक रूप में जल-प्रलय के द्वारा उन्हें दंडित किया। इस जल-प्लावन में मनु को छोड़कर समस्त देवजाति नष्ट हो गई थी।
सारांश
- छायावाद का प्रमुख आधारस्तंभ ‘कामायनी’ महाकाव्य है। यह पंद्रह सर्गों में विभाजित है। इसे नायिका प्रधान काव्य कहा जाता है। कामायनी में पात्रों के व्यक्तित्व और अंतर्मन का सामंजस्य पूर्ण निर्वाह किया गया है। प्रसाद ने मनोवैज्ञानिक आधार लेकर मानव की मनोभावनाओं का बड़ा ही सुंदर चित्रांकन है। उन्होंने इसमें शैवदर्शन के प्रत्याभिज्ञादर्शन उल्लेखित समरसता सिद्धांत का भी गहनता एवं परिपूर्णता के साथ निरूपण किया है। इसमें प्राचीन देव संस्कृति के विकास और अधःपतन के माध्यम से मानव जीवन के विकास की कथा को रूपायित किया गया है। छायावादी कविता के गुण-दोष भी इस महाकाव्य में स्पष्ट परिलक्षित होता हैं। इसमें कवि की मौलिक कल्पना, पात्र सृष्टि, प्रकृति का बहुआयामी चित्रण, मनोवैज्ञानिकता, प्रतीकात्मकता, गहन चिंतन मनन सभी साकार एवं एकाकार हो गया है। कामायनी अपनी काव्य गरिमा और महानता के कारण विद्धानों में आज भी चर्चा—परिचर्चा, चिंतन-अनुचिंतन और शोध का निरंतर आकर्षण रहा है।
3 responses to “कामायनी – जयशंकर प्रसाद”
बहुत बढ़िया। कामायनी के संदर्भ में इतनी सारी जानकारी। धन्यवाद।
kya is website par lekh bhi publish kiye jate hain?
बहुत ही बढ़िया