लोक नाथ तिवारी की ‘अनगढ़’ की भोजपुरी में 30 मुकरियां

सँझहीं आके जालन कबो, भोरहरिया में आवेलन।
आधी रात में आवस कबो ,पूरा रात बितावेलन।
गायब हो जालन कबो, इहे बा उनकर धंधा।
ए सखि साजन! ना सखि चँदा।1।

कबो ऐने कबो ओने, दिन भर उ माकेलन।
गारी सुनस भा लाठी खास, सगरो घुस के झाँकेलन।।
उनका से बतिआवे में, केहु न पावे पार।
ए सखि साजन! ना सखि पत्रकार।2।

डँरवारी के डाँक के, भोरहरिया में आवेला।
अपने आवे के धमक से, हमरा के जगावेला।।
ओकरे से हम जानिला, देश दुनिया के समाचार।
ए सखि साजन! ना सखि अखबार।3।

नकिअवले बा एतना कि, सुध बुध भुलाईल बा।
जिअल भार भईल बा अब, जिनिगी से जी अकुलाईलबा।।
मन करत बा लईकन के, खिया के ज़हर खाई।
ए सखि साजन! ना सखि महँगाई।4।

संगे लेके घुमिला, ओकरा के हम शान से।
सुटूर सुटूर बतिआवेला, सटके हमरा कान से।।
हमसे झटसे कहि देला, केवनो खब़र जे आईल।
ए सखि साजन! ना सखि मोबाईल।5।

ओकरा सोझा बईठके, घंटो ओके निहारिला।
ओकर करतब देखके, सब कुछ ओ पे वारिला।।
बड़ी सुख देबेला उ, रात दिन हर सीजन।
ए सखि साजन! ना सखि टेलीविजन।6।

कब आई कब आई, इहे सोच के हम अकुलाईला।
आवत के जे देख लिहींला, बड़ी खुश हो जाईला।।
आँखि के सोझा खाड़ देखके, फ्रेश हो जाला ब्रेन।
ए सखि साजन! ना सखि ट्रेन।7।

बड़ी निक लागेला उनकर, बोली अउरी तेवर।
दुसरे बदे बरल करेलन, उ धुरी में जेंवर।।
उनका सोझा ना चलेला, केहु के अकील।
ए सखि साजन! ना सखि वकील।8।

उनका ओरी देख देख के, सबके मन ललचेला।
जालन जेकरा पंजरा, उ बड़ी घघचेला।।
केकरो में ना देखलीं, ताकत उनका जइसा।
ए सखि साजन! ना सखि पइसा।9।

सकपका जाला सभे, जसहीं परेला नज़र।
धकपक मनवा करेला, परेला देह पे बजर।।
मँगला पे जे ना दिही त, उनका के घसिटी।
ए सखि साजन! ना सखि टी.टी.।10।

ओकरा अवते बड़ बड़ सेर, बनि जाला सियार।
गदहो के बाप कहेला, करेला झुक के नमस्कार।।
गदहवो मौका ताड़ के, खाला खुबिए भाव।
ए सखि साजन! ना सखि चुनाव।11।

उहे बा कि हमरा के, सुघर संसार देखावेला।
कबो कुछो पढ़वावेला, कबो कुछो लिखवावेला।।
सफर के साथी होला उ, रेल मा भा बस मा।
ए सखि साजन! ना सखि चश्मा।12।

जेकरा भिरी रहेला, ओकर मान बढ़ावेला।
जेकरा भिरी ना रहे त, ओकरा के तरसावेला।।
सब अछइत ओकरे बिना, करेजा सबके खउलत।
ए सखि साजन! ना सखि दउलत।13।

एतना ताकत बा ओकरा में, बड़ बड़ लोग झुक जाला।
मालामाल करे केहु के, केहु के देवाला।।
ओकरा आगे केहु ना ठहरे, मारेला जब चोट।
ए सखि साजन! ना सखि नोट।14।

साँझ सबेरे जबे तबे, सब ओकरा के जोहेला।
आँखि के आगा आ जाला त, सबके मन के मोहेला।।
ओकरा बिना एको दिना, हमरा रहल न जाय।
ए सखि साजन! ना सखि चाय।15।

जबले उ दुआर पर रही, घर में केहु आई ना।
बर्तन बासन गहना गुरिया, टकसी एको पाई ना।।
ओकरा बिना कइसे कतहुँ, जाईं नाहीं बुझाला।
ए सखि साजन! ना सखि ताला।16।

रात भर जागल, भिनुसहरे आँख मुँदाइल।
जेतना सनेह भरल रहे, बूँदे बूँद ओराइल।।
रोज राती के हमरा खातिर, जरावे आपन जिया।
ए सखि साजन! ना सखि दिया।17।

कबो देला दुख उहे, देला कबो सुख।
केहु नाहीं जाने कब, केने बदली रुख।।
कबो लउके लाल उजर, होला कबो करिया।
ए सखि साजन! नाहीं बदरिया।18।

ई दइया निरदइया, बहुते हमे सतावेला।
रोज राति के आके, हमरा के किकुरावेला।।
पँजरा आवे जसहीं तसहीं, काँपे लागे हाड़।
ए सखि साजन! ना सखि जाड़।19।

केहु के जीवन, मरन केहु के भाखेला।
केहु के उतारे पगरी, मोंछ केहु के राखेला।।
केहु के भिखारी, बनावे केहु के दानी।
ए सखि साजन! ना सखि पानी।20।

बहुते दुख उठवलीं हम, जबले ओकर साथ धराइल।
ओकरे कारन खेत बधार, अउर हमार घर बार बेंचाइल।।
तबो ना छोड़लीं ओकर साथ, छूट गईल भले मेहरारु।
ए गोंइया गोरकी! ना गोंइया दारु।21।

ओकरा फेरा में फँस के, फूँक दिहलीं हम दउलत।
खाली हो गईल हाथ हमार, करेजा बाटे खउलत।।
ओकरे कारन देहियों के, बिगड़ल बाटे दासा।
ए गोंइया गोरकी! ना गोंइया नाशा।22।

जेने उ चलेले, ओने उठ जाला तुफान।
जान बचावे केहु के, केहु के लेले जान।।
घाव करेले जेतना, ओतना नाहीं करी बल्लम।
ए गोंइया गोरकी! ना गोंइया कलम।23।

आवेले त दुख देले, जाले जसहीं होला अन्हार।
लड़ेले त प्यार करेले, गुँड़ेरे त होला तकरार।।
तिरछी ताके जसहीं तसहीं, फरके मन के पाँख।
ए गोंइया गोरकी! ना गोंइया आँख।24।

संगे ओकरा बईठीला, त आवेला उन्घाई।
इहे मन करेला कि, मुँह फेर सुत जाईं।।
बाकिर संगे ना बइठब त, दुसर मिली खिताब।
ए गोंइया गोरकी! ना गोंइया किताब।25।

जबले ओकरा फेरा में पड़लीं, पातर भइल दिन।
रसगुल्ला खियाइला देख!, काढ़ काढ़ के रिन।।
ओकरा कारन अबही, केतना बिपत घहरी।
ए गोंइया गोरकी! ना गोंइया कचहरी।26।

केतने पापड़ बेलनी हम, तब जाके मिलल।
हमरा जीवन के गड़ही में, सुघर कुँइया खिलल।।
ओकरा अवते भर गईल, संबंधन के टोकरी।
ए गोंइया गोरकी! ना गोंइया नोकरी।27।

सँउसे संसार में घुमि घुमि, बघारब केतनो सेखी।
ओकरा रहते हमरा के,घिरना से सभे देखी।।
जबले रही चिढ़ाई सभे, हमरा के लिबी लिबी।
ए गोंइया गोरकी! ना गोंइया गरीबी।28।

ओकरे मुँह देख के, रोज सबेरे जागिला।
ओकरे मुँह देख के, रोज काम पे लागिला।।
जहिया उ बिगड़ जाले, अकाज होला बड़ी।
ए गोंइया गोरकी! ना गोंइया घड़ी।29।

कहे सुने में निमन लागे, चर्चा ओकर चलाइला।
आवेला जब मौका, ओकरा पँजरा ना जाइला।।
ओकर गुन गाईंला, निभाईंला दुसरे संगे इयारी।
ए गोंइया गोरकी! ना गोंइया ईमानदारी।30।

लोक नाथ तिवारी ‘अनगढ़’
(खड़ी बोली और भोजपुरी में छंदबद्ध कविता और मुकरियां करने वाले स्वतंत्र कवि)

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