कहानी से जुड़ी मुख्य बातें
- दुनिया का सबसे अनमोल रत्न प्रेमचंद की पहली कहानी मानी जाती है।
- हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू-फारसी, बांग्ला, गुजराती और मराठी के जानकार मुंशी दयानारायण निगम कानपुर से प्रकाशित होने वाली उर्दू पत्रिका ‘जमाना’ के संपादक थे। इन्होंने ही प्रेमचंद की कहानी ‘दुनिया का सबसे अनमोल रत्न’ को 1907 में प्रकाशित किया था।
- आगे ‘नवाब राय’ को प्रेमचंद नाम मुंशी दयानारायण निगम ने ही दिया था।
- ‘जमाना’ पत्रिका के बाद यह कहानी उर्दू कहानी संग्रह ‘सोज़े-वतन’ (1908) में प्रकाशित हुई।
- इस कहानी संग्रह में पांच कहानियां है : 1) दुनिया का सबसे अनमोल रत्न 2) शेख मखमूर 3) यही मेरा वतन है 4) शोक का पुरस्कार और 5) सांसारिक प्रेम।
- मुंशी प्रेमचंद ने बनारसीदास चतुर्वेदी के प्रश्नों के उत्तर देने के क्रम में लिखा है – ”मैंने 1907 में गल्प लिखना शुरू किया। सबसे पहले 1908 में मेरा ‘सोज़े वतन’ जो पांच कहानियों का संग्रह है, जमाना प्रेस से निकला था, पर उसे हमीरपुर के कलेक्टर ने मुझसे लेकर जलवा डाला था। उनके ख्याल में वह विद्रोहात्मक था, हालांकि तब से उसका अनुवाद कई संग्रहों और पत्रिकाओं में निकल चुका है।”
- यह कहानी वर्णनात्मक कथा-शैली में लिखी गई, उर्दू शब्दावली की बहुलता वाली कहानी है।
कहानी की विषय-वस्तु
- प्रेम-परीक्षा की कहानी
- प्रेम के लिए संघर्ष का चित्रण
- एक अलग ढंग से प्रेम के आदर्श रूप की झलक
- अनमोल रत्न के रूप में देशभक्ति का चित्रण
- कहानी का सुखद अंत
- तत्कालीन स्वतंत्रता-आंदोलन को एक नई दिशा
कहानी के पात्र
- कहानी में मुख्यत: दो ही पात्र हैं – दिलफ़िगार (घायल दिलवाला/दुखी) और दिलफ़रेब (दिल को फरेब देने वाली/सुंदर नायिका)।
- अन्य पात्र (संवाद की दृष्टि से) – काला चोर, हज़रते ख़िज्र, राजपूत देशभक्त।
कहानी का सारांश
दिलफिगार एक कँटीले पेड़ के नीचे दामन चाक किये बैठा हुआ खून के आँसू बहा रहा था। वह सौन्दर्य की देवी यानी मलका दिलफरेब का सच्चा और जान-देनेवाला प्रेमी था। उन प्रेमियों में वही जो इत्र-फुलेल में बसकर और शानदार कपड़ों से सजकर आशिक के वेग में माशूकियत का दम भरते हैं। बल्कि उन सीधे-सादे भोले-भाले फिदाइयों में जो जंगल और पहाड़ों से सर टकराते हैं और फरियाद मचाते फिरते हैं।
दिलफ़रेब ने दिलफ़िगार से कहा था – ”अगर तू मेरा सच्चा प्रेमी है, तो जा और दुनिया की सबसे अनमोल चीज लेकर मेरे दरबार में आ। तब मैं तुझे अपनी गुलामी में कबूल करूँगी। अगर तुझे वह चीज न मिले तो खबरदार इधर रूख न करना, वर्ना सूली पर खिंचवा दूँगी।”
दिलफ़िगार सोचता है दुनिया की सबसे अनमोल चीज है क्या? – कारूँ का खजाना? आबे हयात? खुसरो का ताज? जामेजम? तख्ते ताऊस? परवेज की दौलत? नहीं, यह चीजें हरगिज नहीं। दुनिया में जरूर इनसे भी महँगी, इनसे भी अनमोल चीजें मौजूद हैं, मगर वह क्या है? कैसे मिलेगी? या खुदा, मेरी मुश्किल क्यों कर आसान होगी।
दिलफ़िगार द्वारा खोजा गया पहला अनमोल रत्न – फांसी के समय काला चोर चिल्लाता है : ”खुदा के वास्ते मुझे एक पल के लिए फांसी से उतार दो ताकि अपने दिल की आख़िरी आरजू निकाल सकूं” काले चोर के आंसू को अनमोल मोती मान करके दिलफ़िगार अब अपनी माशूक़ा दिलफ़रेब के शहर मीनोसवाद को चला।
दिलफ़िगार ने दिलफ़रेब के दरबार में पहुंचकर आशा और भय की एक विचित्र मन:स्थिति में वह बूँद पेश की और उसकी सारी कैफियत बहुत पुरअसर लफ्जों में बयान की। दिलफरेब ने पूरी कहानी बहुत गौर से सुनी और वह भेंट हाथ में लेकर जरा देर तक गौर करने के बाद बोली-दिलफिगार, बेशक तूने दुनिया की एक बेशकीमत चीज ढूंढ़ निकाली, तेरी हिम्मत और तेरी सूझ-बूझ की दाद देती हूँ! मगर यह दुनिया की सबसे बेशकीमती चीज नहीं, इसलिए तू यहाँ से जा और फिर कोशिश कर, शायद अब की तेरे हाथ वह मोती लगे और तेरी किस्मत में मेरी गुलामी लिखी हो। जैसा कि मैंने पहले ही बतला दिया था, मैं तुझे फांसी पर चढ़वा सकती हूँ मगर मैं तेरी जॉँबख्शी करती हूँ इसलिए कि तुझमें वह गुण मौजूद हैं, जो मैं अपने प्रेमी में देखना चाहती हूँ और मुझे यकीन है कि तू जरूर कभी-न-कभी कामयाब होगा।
दिलफ़िगार द्वारा खोजा गया दुसरा अनमोल रत्न – एक रोज वह शाम के वक्त किसी नदी के किनारे खस्ताहाल पड़ा हुआ था। बेखुदी के नशे से चौंका तो क्या देखता है कि चन्दन की एक चिता बनी हुई है और उस पर एक युवती सुहाग के जोड़े पहने सोलहों सिंगार किये बैठी है। उसकी जॉँध पर उसक प्यारे पति का सर है। हजारों आदमी गोल बांधे खड़े हैं और फूलों की बरखा कर रहे हैं। यकायक चिता मे से खुद-ब-खुद एक लपट उठी। सती का चेहरा उस वक्त एक पवित्र भाव से आलोकित हो रहा था, चिता की पवित्र लपटें उसके गले से लिपट गयीं और दम के दम में वह फूल-सा शरीर राख कर ढेर हो गया।
प्रेमिका ने अपने को प्रेमी पर न्योछावर कर दिया और दो प्रेमियों के सच्चे, पवित्र, अमर प्रेम की अन्तिम लीला आंख से ओझल हो गयी। जब सब लोग अपने घरों को लौटे तो दिलफिगार चुपके से उठा और अपने चाक-दामन कुरते में यह राख का ढेर समेट लिया और इस मुट्ठी भर राख को दुनिया की सबसे अनमोल चीज समझता हुआ, सफलता के नशे में चूर, यार के कूचे की तरफ चला।
दिलफरेब ने जांबाज आशिक को फौरन दरबार मे बुलाया और उस चीज के लिए, जो दुनिया की सबसे बेशकीमती चीज थी, हाथ फैला दिया। दिलफिगार ने हिम्मत करके उसकी चांदी जैसे कलाई को चूम लिया और मुट्ठी भर राख को उसकी हथेली मे रखकर सारी कैफियत दिल को पिघला देने वाले लफ्जों में कह सुनायी और अपनी सुन्दर प्रेमिका के होंठों से अपनी किस्मत का मुबारक फैसला सुनने के लिए इन्तजार करने लगा। दिलफरेब ने उस मुट्ठीभर राख को आंखों से लगा लिया और कुछ देर तक विचारों के सागर में डूबे रहने के बाद बोली-ऐ जान निछावर करने वाले आशिक दिलफिगार! बेशक यह राख जो तू लाया है, जिसमें लोहे को सोना कर देने की सिफत है, दुनिया की बहुत बेशकीमत चीज है और मैं सच्चे दिल से तेरी एहसानमन्द हूँ कि तूने ऐसी अनमोल भेंट दी। मगर दुनिया में इससे भी ज्यादा अनमोल चीज है, जा उसे तलाश कर और तब मेरे पास आ। मैं तहेदिल से दुआ करती हूँ कि खुदा तुझे कामयाब करे। यह कहकर वह सुनहरे परदे से बाहर आयी और माशूकाना अदा से अपने रूप का जलवा दिखाकर फिर नजरों से ओझल हो गई।
दिलफ़िगार द्वारा खोजा गया तीसरा अनमोल रत्न – दिलफिगार का हियाब छूट गया। उसे यकीन हो गया कि मैं दुनिया में उसी तरह नाशाद और नामुराद मर जाने के लिए पैदा किया गया था और अब इसके सिवा और कोई चारा नहीं कि किसी पहाड़ पर चढ़कर नीचे कूद पडूँ ताकि माशूक के जुल्मों की फरियाद करने के लिए एक हड्डी भी बाकी न रहे। वह दीवाने की तरह उठा और गिरता-पड़ता एक गगनचुम्बी पहाड़ की चोटी पर जा पहुँचा। किसी और समय वह ऐसे ऊँचे पहाड़ पर चढ़ने का साहस न कर सकता था मगर इस वक्त जान देने के जोश में उसे वह पहाड़ एक मामूली टेकरी से ज्यादा ऊँचा न नजर आया। करीब था कि वह नीचे कूद पड़े कि हरे-हरे कपड़े पहने हुए और हरा अमामा बांधे एक बुजुर्ग एक हाथ में तसबीह और दूसरे हाथ में लाठी लिये बरामद हुए और हिम्मत बढ़ानेवाले स्वर में बोले-दिलफिगार, नादान दिलफिगार, यह क्या बुजदिलों जैसी हरकत है! तू मुहब्बत का दावा करता है और तुझे इतनी भी खबर नहीं कि मजबूत इरादा मुहब्बत के रास्ते की पहली मंजिल है? मर्द बन कर हिम्मत न हार। पूरब की तरफ एक देश है जिसका नाम हिन्दोस्तान है, वहाँ जा और तेरी आरजू पूरी होगी। यह कहकर हजरते खिज्र गायब हो गये।
मुद्दतों तक कांटों से भरे हुए जंगलों, आग बरसानेवाले रेगिस्तानों, कठिन घाटियों और अबंध्य पर्वतों को तय करने के बाद दिलफिगार हिन्द की पाक सरजमीन में दाखिल हुआ और एक ठंडे पानी के सोते में सफर की तकलीफें धोकर थकान के मारे नदी के किनारे लेट गया। शाम होते-होते वह एक चटियल मैदान में पहुँचा जहाँ बेशुमार अधमरी और बेजान लाशें बिना कफन के पड़ी हुई थीं। चील, कौए और वहशी दरिन्दे भरे पड़े थे और सारा मैदान खून से लाल हो रहा था। यह डरावना दृश्य देखते ही दिलफिगार का जी दहल गया।
यकायक उसे ख्याल आया, यह लड़ाई का मैदान है और यह लाशें सूरमा सिपाहियों की हैं। इतने में करीब से कराहने की आवाज आयी। दिलफिगार उस तरफ फिरा तो देखा कि एक लम्बा-तगड़ा आदमी, जिसका मर्दाना चेहरा जान निकलने की कमजोरी से पीला हो गया है, जमीन पर सर झुकाये पड़ा हुआ है। सीने से खून का फव्वारा जारी है, मगर आबदार तलवार की मूठ पंजे से अलग नहीं हुई। दिलफिगार ने एक चीथड़ा लेकर घाव के मुहं पर रख दिया ताकि खून रुक जाये और बोला-ऐ जवाँमर्द, तू कौन है? जवाँमर्द, तू कौन है? जवाँमर्द ने यह सुनकर आँखें खोलीं और वीरों की तरह बोला—क्या तू नहीं जानता मैं कौन हूँ, क्या तूने आज इस तलवार की काट नहीं देखी? मैं अपनी मॉँ का बेटा और भारत का सपूत हूँ। यहं कहते-कहते उसकी त्यौरियों पर बल पड़ गये। पीला चेहरा गुस्से से लाल हो गया और आबदार शमशीर फिर अपना जौहर दिखाने के लिए चमक उठी। दिलफिगार समझ गया कि यह इस वक्त मुझे दुशमन समझ रहा है, नरमी से बोला—ऐ जवांमर्द, मैं तेरा दुश्मन नहीं हूँ। अपने वतन से निकला हुआ एक गरीब मुसाफिर हूँ। इधर भूलता-भटकता आ निकला। बराय मेहरबानी मुझसे यहाँ की कुल कैफियत बयान कर।
यह सुनते ही घायल सिपाही बहुत मीठे स्वर में बोला-अगर तू मुसाफिर है तो आ और मेरे खून से तर पहलू में बैठ जा क्योंकि यही दो अंगुल जमीन है जो मेरे पास बाकी रह गयी है और जो सिवाय मौत के कोई नहीं छीन सकता। अफसोस है कि तू यहाँ ऐसे वक्त में आया जब तेरा आतिथ्य-सत्कार करने के योग्य नहीं। हमारे बाप-दादा का देश आज हमारे हाथ से निकल गया और इस वक्त हम बेवतन हैं। मगर (पहलू बदलकर) हमने हमलावर दुश्मन को बता दिया जो लाशें तू देख रहा है, यह उन लोगों की हैं, जो इस तलवार के घाट उतरे हैं। (मुस्कराकर) और गो कि मैं बेवतन हूँ, मगर गनीमत है कि दुश्मन की जमीन पर नहीं मर रहा हूँ। (सीने के घाव से चीथड़ा निकालकर) क्या तूने यह मरहम रख दिया? खून निकलने दे, इसे रोकने से क्या फायदा? क्या मैं अपने ही देश में गुलामी करने के लिए जिन्दा रहूँ? नहीं, ऐसी जिन्दगी से मर जाना अच्छा। इससे अच्छी मौत मुमकिन नहीं।
जवाँमर्द की आवाज मद्धिम हो गयी, अंग ढीले पड़ गये, खून इतना ज्यादा बहा कि खुद-ब-खुद बन्द हो गया। रह-रह-कर एकाध बूंद टपक पड़ता था। आखिरकार सारा शरीर बेदम हो गया, दिल की हरकत बन्द हो गयी और आंखें मुंद गयीं। दिलफिगार ने समझा अब काम तमाम हो गया कि मरनेवाले ने धीमे से कहा-भारतमाता की जय।
और उनके सीने से खून का आखिरी कतरा निकल पड़ा। एक सच्चे देशप्रेमी और देशभक्त ने देशभक्ति का हक अदा कर दिया। दिलफिगार पर इस दृश्य का बहुत गहरा असर पड़ा और उसके दिल ने कहा, बेशक दुनिया में खून के इस कतरे से ज्यादा अनमोल चीज कोई नहीं हो सकती। उसने फौरन खून की बूंद को, जिसके आगे यमन का लाल हेच भी है, हाथ में ले लिया और इस दिलेर राजपूत की बहादुरी पर हैरत करता हुआ अपने वतन की तरफ रवाना हुआ और सख्तियां झेलता हुआ आखिरकार बहुत दिनों के बाद रूप की रानी मलका दिलफरेब की ड्यौढ़ी पर जा पहुँचा और पैगाम दिया कि दिलफिगार सुर्खरू और कामयाब होकर लौटा है और दरबार में हाजिर होना चाहता है।
दिलफरेब ने उसे फौरन हाजिर होने का हुक्म दिया। खुद हस्बे मालूम सुनहरे परदे की ओंट में बैठी और बोली-दिलफिगार, अबकी तू बहुत दिनों के बाद वापस आया है। ला, दुनिया की सबसे बेशकीमत चीज कहाँ है?
दिलफिगार ने मेंहदी-रची हथेलियों को चूमते हुए खून का कतरा उस पर रख दिया और उसकी पूरी कैफियत पुरजोश लहजे में कह सुनायी। वह खामोश भी न होने पाया था कि यकायक यह सुनहरा परदा हट गया और दिलफिगार के सामने हुस्न का एक दरबार सजा हुआ नजर आया, जिसकी एक-एक नाजनीन जुलेखा से बढ़कर थी। दिलफरेब बड़ी शान के साथ सुनहरी मसनद पर सुशोभित हो रही थी। दिलफिगार हुस्न का यह तिलिस्म देखकर अचम्भे मे पड़ गया और चित्रलिखित-सा खड़ा रहा कि दिलफरेब मसनद से उठी और कई कदम आगे बढ़कर उससे लिपट गयी। गानेवालियों ने खुशी के गाने शुरू किये, दरबारियों ने दिलफिगार को नजरें भेंट कीं और चॉँद-सूरज को बड़ी इज्जत के साथ मसनद पर बैठा दिया।
दिलफ़रेब ने कहा – आज से तू मेरा मालिक है और मैं तेरी लौंडी!
यह कहकर उसने एक रत्नजटित मंजूषा मँगायी और उसमें से एक तख्ती निकाली जिस पर सुनहरे अक्षरों से लिखा हुआ था-
‘खून का वह आखिरी कतरा जो वतन की हिफाजत में गिरे दुनिया की सबसे अनमोल चीज है।’
कहानी का सारांश
यह कहानी हमें देश प्रेम की सीख देने वाली कहानी है। साथ ही यह कहानी हमारे अंदर देशभक्ति का जज्बा भी जगा जाती है।
One response to “दुनिया का सबसे अनमोल रत्न – प्रेमचंद”
पूरी कहानी को खोल कर रख दिया। समीक्षा अच्छी है और भी कहानियों की करें। कृपया।