कहानीकार का परिचय
- हिन्दी की प्रथम कहानीकार श्रीमती राजेन्द्र बाला घोष (बंग महिला) का जन्म 1882ई० में बनारस में हुआ था।
- बंग महिला हिंदी-नवजागरण की पहली छापामार लेखिका थीं।
- उनके पिता का नाम रामप्रसन्न घोष और माता का नाम नीदरवासिनी घोष था।
- उनको बचपन में ‘रानी’ और ‘चारुबाला’ के नाम से पुकारा जाता था।
- उनके पति का नाम पूर्ण चंद्रदेव था।
- प्रारंभिक शिक्षा माताजी के संरक्षण में प्राप्त की।
- सन् 1904 से 1917 तक उनकी रचनाएँ विभिन्न प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं।
- इन्होंने ‘बंग महिला’ छद्मनाम अपना लेखन कार्य किया।
- स्त्री-शिक्षा हेतु महत्वपूर्ण योगदान रहा।
- अपने दो बच्चों की असमय मृत्यु और पति के निधन से वे टूट गईं।
बंग महिला की प्रकाशित कहानियां
- चंद्रदेव से मेरी बातें (1904) सरस्वती पत्रिका में निबंध के रूप में छपी।
- कुंभ में छोटी बहू (1906)
- दुलाईवाली (1907) में ‘सरस्वती’ पत्रिका में प्रकाशित
- भाई-बहन (1908) में ‘बाल प्रभाकर’ पत्रिका में प्रकाशित
- दालिया (1909)
- हृदय परीक्षा (1915) में ‘सरस्वती’ पत्रिका में प्रकाशित
पुस्तक
कुसुम संग्रह, काशी नागरी प्रचारिणी सभा, 1911 (अनूदित कहानियों व विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए लेख, आलेखों का संग्रह)
कहानी – चंद्रदेव से मेरी बातें से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य
- ‘चंद्रदेव से मेरी बातें’ कहानी पहले निबंध के रूप में 1904 के सरस्वती’ पत्रिका में प्रकाशित हुई थी।
- प्रारंभ में इसे निबंध के रूप में स्वीकृति दी गई किन्तु कालांतर में यह एक कहानी के रूप में स्वीकार कर ली गई।
- लक्ष्मी सागर वैष्णवी जी ने अपने निबंध ‘नवनीत’ में लिखा है, ‘‘चंद्रदेव से मेरी बातें’ ‘कहानी’ नहीं एक ‘निबंध’ है।”
- यह पत्रात्मक शैली में लिखी पहली कहानी है तथा इस कहानी पर ‘शिवशम्भु के चिठ्ठे’ निबंध का प्रभाव देखा जा सकता है।
- बंग महिला ने इस कहानी में अर्थनीति और राजनिति को केंद्र में रखकर तत्कालीन वायसराय ‘लार्ड कर्जन’ और उसकी व्यवस्था पर व्यंग्य किया है।
- अंग्रेजी शासनकाल के परिवेश, शोषणवादी शासन व्यवस्था, औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप आए परिवर्तनों और उनके दुष्परिणामों की यथार्थपरक अभिव्यक्ति की गई है।
- कहानी में चुटकीले व्यंग्यों की प्रधानता है।
- कहानी में पदोन्नति के लिए सिफारिस और चाटुकारिता का वर्णन किया गया है।
- इसमें तत्कालीन समय के सामाजिक, राजनैतिक तथा आर्थिक समस्याओं का चित्रण किया गया है।
- बंगाल विभाजन सरकार के स्तर पर 1903 में शुरू हो चुकी थी और 1904 में तत्कालीन अंग्रेजी सरकार के द्वारा यह विचार जनता के सामने प्रकाशित हुआ था।
- बंग महिला ने बांग्ला साहित्य का हिन्दी अनुवाद किया जो कई पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ।
- कहानी (चंद्रदेव से मेरी बातें) में हिन्दी, अंग्रेजी और हिन्दी के तत्सम शब्दों की बहुलता है।
- इस कहानी में देश की बदहाल आर्थिक दशा और देश में फैली बेरोजगारी एवं नारी के साथ अमानवीय व्यवहार का भी जिक्र किया गया है।
- वर्ष 1911 में नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी से प्रकाशित उनकी पुस्तक कुसुम संग्रह में संकलित इस संग्रह का संपादन आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी ने किया था।
- इस कहानी में लेखिका संवादात्मक शैली में चंद्रदेव से बातें करती है।
कहानी के मुख्य पात्र
- कहानी में केवल दो मुख्य पात्र हैं।
- भगवान चंद्रदेव
- और खुद लेखिका (बंग महिला)
कहानी की मूल संवेदना
- मूल उद्देश्य अंग्रेजी शासन नीतियों के फलस्वरूप हुई भारत की दुर्दशा का यथार्थपरक चित्रण करना।
- बहुआयामी कथ्य और व्यंग्यात्मक शैली।
- सरकारी नौकरियों के नाम पर सुख भोगने की प्रवृत्ति पर व्यंग्य।
- अंग्रेजों के नस्लीय भेदभाव पर कटाक्ष।
- शासन के विभिन्न दफ्तरों में बदली होने की परम्परा पर कटाक्ष।
- लॉर्ड कर्जन की शोषणवादी नीतियों पर प्रहार।
- अंग्रेजों की रंगभेद की नीति।
- अंग्रेजी शासनकाल में भारत की संस्कृति, सभ्यता, धर्म, आदर्श आदि के स्वरूप में आए परिवर्तन पर चोट।
- कुपोषण के शिकार बच्चों की स्थिति की ओर संकेत।
- भारत की विशेषकर बंगाल की दुर्दशा की ओर संकेत।
- विद्युतीकरण, यंत्रीकरण के फलस्वरूप उत्पन्न बेरोजगारी।
- गंगा पर बन रहे पुलों और बाँधों के फलस्वरूप धार्मिक भावनाओं पर हुए आघात की ओर संकेत|
- युद्ध सामग्री के विकास की ओर संकेत।
- वैज्ञानिकता के फलस्वरूप बौद्धिकता के विकास तथा उससे उत्पन्न परिवर्तनों की चर्चा|
- भारत भूमि के दोहन से विकृत भारतभूमि का स्वरूप-चित्रण।
- भारतीय शासकों की चाटुकारिता तथा अंग्रेजों के हाथ की कठपुतली होने का चित्रण।
- चिकित्सकीय विकास और प्लेग जैसी महामारियों का फैलना।
- अंग्रेजों की भारत में अपने शासन को मजबूत करने की नीति।
- मशीनीकरण और द्रुतगति से कार्य सम्पन्न होना।
कहानी को लेकर विद्वानों के मत
भवदेव पाण्डेय के अनुसार – “बंग महिला की पहली कहानी ‘चंद्रदेव से मेरी बातें’ हिंदी साहित्य की पहली कहानी थी, जिसने अपने समय की राजनीति और अर्थनीति को केंद्रीय कथ्य बनाया।”
भवदेव पाण्डेय इसे हिंदी की पहली राजनीतिक कहानी मानते हुए लिखते हैं – “भारत की बदहाल आर्थिक दशा और देश में फैली बेरोजगारी के चित्रण साथ-साथ समाज में नारियों की स्थिति, जातिगत पक्षधरता और हर क्षेत्र में वृद्ध पीढ़ी के अनुचित दबदबे का भी रेखांकन किया।”
गोपालराय के अनुसार – “व्यंग्य आधुनिक कहानी का बहुत कारगर औजार माना जाता है। इस कहानी (चंद्रदेव से मेरी बातें) में समकालीन वायसराय लॉर्ड कर्जन के प्रशासन पर करारा व्यंग्य किया गया है।”