लोक नाथ तिवारी ‘अनगढ़’ की कविताएं

राजनीति

आज राजनीति किसी गणिका से कम नहीं, देखने में सुंदर चरित्र से घिनौना है।
घोटाला के मकान में फरेब के पलंग पे, रुपया रजाई और झूठ का बिछौना है।।

काले केश कलंक के मयंक से हैं लिपटे, धन और बल दोनों कान के तरौना हैं।
लोगों को फँसाती है ये शब्द जाल फेंक कर, औ पूरा देश इसके हाथ का खिलौना है।।

हिकारती नजर से गरीबों को ये देखती, और धनवान हेतु आँचल बिछाती है।
सिर्फ धनवानों के इशारों पर नाचती ये, होटलों में बैठ कर जाम टकराती है।।

ये अपने शागिर्द का ख्याल बड़ी करती है,खुद बदनाम होके इनको बचाती है।
चुनाव के लगन मे ये गाँव गाँव घुम के, खुद नाचती है और सबको नचाती है।।

बहुत बेशर्म होती बेवफा ये राजनीति, उम्र भर साथ नहीं किसी का निभाती है।
किसी के दो बाँहों मे ये बँधकर रही नहीं, आज किसी के ये कल किसी के हो जाती है।।

साथ जिसका देती उसे शिखर पर ले जाती, और साथ छोड़ते हीं धूल भी चटाती है।
भोले भाले लोग कभी फँसते हैं जाल में तो, अनगढ़ राजनीति भीख भी मँगाती है ।।

गरीबी और नेता

गरीबों का देश जहाँ टूटे फूटे घर को, किवाड़ की जगह आड़ करते हैं टाट से।
गरीब देशवासियों के जर्जर शरीर को, मिलता आराम जहाँ टूटी हुई खाट से।।

बहुत आश्चर्य मुझे होता उस वक्त जब, झलकती अमीरी है रिहायसी प्लॉट से।
समाजवादी खुद को जो कहते हैं नेताजी, आलिशान बंगला में रहते हैं ठाट से।।

देशप्रेमी

देश का सिर किया है ऊँचा, सूर वीर इक आया है।
जन नायक अधिनायक बनकर, सबके दिल में छाया है।।

दिखा दिया दुश्मन को उसने, कैसे शान से जीते हैं।
गले लगोगे गले लगेंगे, वर्ना खून भी पीते हैं।।

करते रार नहीं अपने से, ऊँचे कद के लोगों से।
वर्ना खुद मर जाएगा तू , खुद फैलाए रोगो से।।

सबक़ यही सिखलाया उसको, लाल आज इस माटी का।
क़ायम किया मिसाल लाल ने, भारत के परिपाटी का।।

अभी समय है सबक़ मिला है, इतने पर रुक जाओगे।
सच कहता हूँ छोटे भाई, मिटने से बच जाओगे।।

वर्ना मिटना भाग्य में है, तो अब तुम मिट जाओगे।
जिस मिट्टी से जन्म लिया है, उसमें हीं मिल जाओगे।।

पढ़ाई और भविष्य

पिता पुत्र से कहें कि जम के पढ़ाई करें, बिना पढ़े आप कुछ कर नहीं पाऐंगे।
जितनी ऊँचाई की पढ़ाई आप करेंगे तो, उतनी ऊँचाई वाली नौकरी भी पाऐंगे।।

बोले पुत्र नौकरी नहीं है मुझे करनी, नेता बनकर पूरे देश में छा जाऐंगे।
नेता बनने के लिए पढ़ना जरुरी नहीं, अँगूठा लगा के इस देश को चलाऐंगे।।

लोक नाथ तिवारी ‘अनगढ़’
(खड़ी बोली और भोजपुरी में छंदबद्ध कविता और मुकरियां करने वाले स्वतंत्र कवि)

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