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“किरन! तुम्हारे कानों में क्या है?” उसके कानों से चंचल लट को हटाकर कहा – “कँगना।” “अरे! कानों में कँगना?” सचमुच दो कंगन कानों को
किसी श्रीमान जमीनदार के महल के पास एक गरीब अनाथ विधवा की झोंपड़ी थी। जमीनदार साहब को अपने महल का हाता उस झोंपड़ी तक बढ़ाने
1 काशी जी के दशाश्वमेध घाट पर स्नान करके एक मनुष्य बड़ी व्यग्रता के साथ गोदौलिया की तरफ आ रहा था। एक हाथ में एक
भगवान चंद्रदेव! आपके कमलवत कोमल चरणों में इस दासी का अनेक बार प्रणाम। आज मैं आपसे दो चार बातें करने की इच्छा रखती हूँ। देखो,
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